04/11/08
चिडियाघर विमेंस का ही उपन्यास नही
लोग चिडियाघर को विमेंस का उपन्यास कह रहे हैं यह ठीक नहीं। मुझे खुशी है की लोग इसे पसंद कर रहे हैं। कामतानाथ जी ने हिंदुस्तान दैनिक और डॉ रजनी गुप्ता ने इंडिया टूडे में इसके बारे में लिखा है। मुझे कामतानाथ जी की टिप्पदी से खुशी हुई है। मी हिन्दी का निर्गुट लेखक हूँ। इसका नुकसान मुझे उठाना पड़ रहा है लेकिन खुशी है की पाठकों ने मुझे पलकों पर बिठाया है। जिसके बाद मेरे प्रति प्रकाशकों का नजरिया बदला है। अगले उपन्यास के लिए अभी से तीन प्रकाशक मांग रहे हैं। यह स्थिति पाठकों के प्यार से बनी है। शुक्रिया पाठकों, लेकिन चिडियाघर को न महिलाओ का उपन्यास कहिये न मुझे पुरूष लेखक। लेखक को सिर्फ़ लेखक कहिये। लिंग के आधार पर बांटने का जमाना अब पुराना हो चुका है। बाज़ार ने लेखको को बहतर लिखने के लिए मज़बूर किया है, अब जो बेहतर लिखेगा वाही बिकेगा। सो चिडियाघर को प्लीज स्त्री विमर्श न कहिये। उसकी कहानी को कहानी की तरह लीजिये। जहा तक मेरी भाषा का सवाल है तो मी पत्रकार पहले हूँ, सो मेरी हिन्दी आम आदमी की हिन्दी है.
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