23/05/09
मैं खुश नहीं हूँ
बहुत उदास लगाती है सुबह
बहुत निराश लगाती है शाम
मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना
मुझे जाने क्यों गाँधी, लोहिया का अपमान लगता है
गरीब की रोटी मंहगी हो गई
अमीर की रोटी सस्ती
कल जब गया बिग बाज़ार
१४० रुपये में मिला मुझे १० किलो आटा
आज पड़ोस की आटा चक्की पैर एक मजदूर को
मैंने १३.५० के हिसाब से ३ किलो आटा खरीदते देखा
आँखों में आंसू आ गए
१३००० कमाने वाले रोशन प्रेमयोगी वातानुकूलित बिग बाज़ार में
१४ रुपये किलो आटा खरीदते हैं
१०५ रुपये प्रतिदिन मजदूरी पाने वाले सुनील १३.५० में
मुकेश अम्बानी भी शायद रोटी खाते होंगे
वे भी अधिकतम १५-१६ रुपये किलो आटा खरीदते होंगे
उनके आते का दाम विगत १० सालों में लगभग वही है
मज़दूर-किसान के आते का दाम ५ रुपये से बढ़कर १४ तक पहुच गया
हे महात्मा गाँधी!
क्या यह भारतीय विकास का दर्शन देखकर तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं हैं?
मेरे जिले में पैदा हुए डॉ राम मनोहर लोहिया तो रो रहे हैं
यह कैसा अन्तोदय है बाबा अम्बेडकर?
जब भारत आजाद हुआ था तो इस देश में साछरता दर लगभग २३ प्रतिशत थी
इस समय लगभग ६२ प्रतिशत है
यानि १ प्रतिशत सालाना भी नहीं बढ़ी
अनाज का दाम तो किसानो को मिल रहा है लेकिन
लाभ कमा रही हैं कम्पनियाँ
शुक्रिया मनमोहन सिंह जी
आपके राज़ में मज़दूर और अरबपति की रसोई में जाने वाले आटा का रेट लगभग बराबर है
लेकिन मैं दुखी हूँ प्रधानमंत्री जी
मैं खुश नहीं हूँ
मुंबई स्टाक एक्सचेंज के बढ़ते ग्राफ से
देश में ५ स्टार अस्पतालों के खुलने से
हवाई जहाज का किराया कम होने से
मैं बहुत दुखी हूँ
गाँधी की विचारधारा के मरने से
लोहिया का समाजवाद ढहने से
अम्बेडकर की नीतियों के मरने से
-रोशन प्रेमयोगी
13/05/09
शान्ति के लिए कोई डिस्टर्ब करने वाला चाहिए
तुम्हारे जाने से घर बहुत सूना है
सोचता था कुछ दिन तुम नही रहोगे
तो घर में उथल-पुथल नही रहेगी
मैं कुछ खास लिख सकूंगा
लेकिन ७ दिनों से कुछ न लिख सका
तुम्हारे जो प्लास्टिक के
हाथी, घोडे, हिरन, जिराफ, बकरी, कछुए
मेरी परेशानी का कारण बनते थे
रात में बेड पर चुभते थे
वह सब औंधे मुंह पड़े हैं
कुछ मेरे बेड, मेज और फ्रिज के ऊपर पड़े हैं
ढेर सारे अलमारी में बहुत से आड़े-तिरछे पड़े हैं
वह सब मुझे सोने नही देते
जगाता हूँ उन्हें बार-बार इसलिए कि वे उदास न लगे
वे कभी-कभी भूखे लगते हैं प्यासे भी
मैं चाहता हूँ उन्हें नज़रंदाज करके ख़ुद खा लूँ
खाता हूँ तो पेट नही भरता
सोता हूँ तो नींद नहीं आती
लिखने-पढ़ने बैठता हूँ तो मन नहीं लगता
दिन भर ऑफिस में रहने के बाद घर आता हूँ तो घर उदास लगता है
तुम्हारी याद आती है
काश तुम होते
ये जानवर खुशहाल लगते
तुम इनके साथ मिलकर मुझे डिस्टर्ब करते
तन परेशान होता लेकिन मन उदास न होता
अब समझ गया हूँ एकांत कि अर्थ
अकेला होकर एकांत नही मिलाता
एकांत के लिए समाज चाहिए
शान्ति के लिए कोई डिस्टर्ब करने वाला चाहिए
(अपने बेटे धरातल को याद करते हुए)
-रोशन प्रेमयोगी
Subscribe to:
Posts (Atom)