23/11/08

पीली कनेर हो तुम

इससे पहले नहीं जाना था कि प्यार क्या है.
इससे पहले नहीं माना था कि प्यार दुःख देता है।
एक साल का रहा तुम्हारा साथ
लगा ही नहीं कि तुम भी खास हो।
अब जब तुम हो कोसों दूर।
लगता है,
मेरी जिंदगी में भी प्यार है,
कोई है मेरे दिल के पास
कोई आता है बहुत याद
-रोशन प्रेमयोगी

14/11/08

Bas yun hi...: कुछ बातें...

Bas yun hi...: कुछ बातें...
khuli kitab ki tarah rahana jindagi bhar
duniya jalati hai to jalati rahe
roshan premyogi

05/11/08

कुछ लोग कबीर की तरह गाते है

कुछ लोग कबीर की तरह गाते है
कुछ लोग एसुरी की तरह फाग सुनाते हैं।
कुछ लोग भिखारी ठाकुर की तरह नाच दिखाते हैं।
कवि, गवैया और नचनिया होना बड़ी बात नहीं
बड़ी बात है कबीर, भिखारी ठाकुर और एसुरी होना।
-रोशन प्रेमयोगी

04/11/08

चिडियाघर विमेंस का ही उपन्यास नही

लोग चिडियाघर को विमेंस का उपन्यास कह रहे हैं यह ठीक नहीं। मुझे खुशी है की लोग इसे पसंद कर रहे हैं। कामतानाथ जी ने हिंदुस्तान दैनिक और डॉ रजनी गुप्ता ने इंडिया टूडे में इसके बारे में लिखा है। मुझे कामतानाथ जी की टिप्पदी से खुशी हुई है। मी हिन्दी का निर्गुट लेखक हूँ। इसका नुकसान मुझे उठाना पड़ रहा है लेकिन खुशी है की पाठकों ने मुझे पलकों पर बिठाया है। जिसके बाद मेरे प्रति प्रकाशकों का नजरिया बदला है। अगले उपन्यास के लिए अभी से तीन प्रकाशक मांग रहे हैं। यह स्थिति पाठकों के प्यार से बनी है। शुक्रिया पाठकों, लेकिन चिडियाघर को न महिलाओ का उपन्यास कहिये न मुझे पुरूष लेखक। लेखक को सिर्फ़ लेखक कहिये। लिंग के आधार पर बांटने का जमाना अब पुराना हो चुका है। बाज़ार ने लेखको को बहतर लिखने के लिए मज़बूर किया है, अब जो बेहतर लिखेगा वाही बिकेगा। सो चिडियाघर को प्लीज स्त्री विमर्श न कहिये। उसकी कहानी को कहानी की तरह लीजिये। जहा तक मेरी भाषा का सवाल है तो मी पत्रकार पहले हूँ, सो मेरी हिन्दी आम आदमी की हिन्दी है.