30/01/09

कैसे निकाल पाओगे यादों के सागर से

उदास रातों में मै सपना बनकर आऊंगा

धूप में निकालोगे तो बादल बन जाऊंगा

तुम मुझे कैसे निकाल पाओगे यादों के सागर से

जब भी पाँव उतारोगे नाव से किनारे बांहे फैलाये नज़र आऊंगा

-रोशन प्रेमयोगी

15/01/09

बात कुछ जल्द शुरू हो तो बात होती है

बात कुछ जल्द शुरू हो तो बात होती है
बात से बात बन जाए तो बात होती है
बात की क़द्र करते हो तो बातूनी न बनो
बात यदि अहमियत रखे तो बात होती है
-रोशन प्रेमयोगी

03/01/09

देवदार लग रहे हैं हाथ

बड़ी खतरनाक है नई सुबह
रात में बहुत ठंढ थी
नींद नही आयी
सोचा था सुबह होने पर खूब नहाऊंगा और गरम खिचडी खाऊँगा
और आफिस जाऊंगा
नहा-खा कर ऑफिस पहुँचा तो कहा गया मंदी की चपेट में हो तुम
घर चला आया
अब तो दिन में भी सर्दी लग रही है
उम्मीद थी की पेट की आग गरमी देगी
पर अब तो बरफ लग रहा है पेट
देवदार लग रहे हैं हाथ
पत्थर लग रही है आँखे
पानी लग रहा है दिमाग
रोशन प्रेमयोगी