25/04/09

जब तुम इनमे से कुछ गुनगुनाओगे



मै आपको चाँद तोड़कर तो नही दे सकता


मै अपने हाथों से ईंट भी नही तोड़ सकता


मैं नदी की धारा नही मोड़ सकता


फ़िर भी मैं बहुत कुछ केर सकता हूँ


मैं आपको चाँद का सपना दिखा सकता हूँ


मैं आपके सपनों की परवरिश कर सकता हूँ


मैं बता सकता हूँ कल्पना में यथार्थ कितना है


यथार्थ में झूठ कितना है


मैं सिखा सकता हूँ अपने सुख को कैसे बांटो


मैं बता सकता हूँ अपने दुःख को कैसे एन्जॉय करो


लेकिन यह मत सोचो मेरे पास कोई जादुई छड़ी है


या फ़िर समय को कंट्रोल कराने वाली घड़ी है


मेरे पास सिर्फ़ रास्ते हैं


जो तुम्हारी मंजिल तक भी जाते हैं


मेरे पास सपने हैं


जो तुम्हारे दिल तक जाते हैं


मेरे पास एक आईना है


जिसमे देखकर अपना चेहरा


तुम गुनगुना सकते हो कोई प्रेम गीत


कोई भजन


कोई निर्गुण


जब तुम इनमे से कुछ गुनगुनाओगे


मुझे कोई सुरीला साज़ बजाते पाओगे


-रोशन प्रेमयोगी

6 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया रचना . लिखते रहिये
    बधाई .

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  2. sunder rachana,jaise zindagi ki saari tazgi samayi ho.badhai

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  3. bhai bahut accha likha apne. aap kisi ko apni feelings in lines se hi samjha sakte hain.

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  4. बहुत लाजवाब रचना है रोशन जी.... इस रचना की तरह जो जीयेगा वह पूरी जिंदगी जी लेगा.... धन्यवाद अपनी अभिव्यक्ति बांटने के लिए

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  5. लाजवाब
    काया कहे बहुत ही बढ़िया भी कम है . एक एक शव्द एक कहानी कह रहा है और आप का होसला देख कर लगता है की आप बहुत आशा बड़ी है
    आईआर कहूँगी बहुत बहुत बहुत बढिया

    www.maandarpan.blogspot.com

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