कोई उम्मीद करो ख़ुद से
कोई रास्ता तलाशो ख़ुद से
कोई पतवार गढो ख़ुद से
कोई नाव बनाओ खुद से
कभी गंगा में जाओ ख़ुद से
कभी रेत से नहाओ ख़ुद से
कभी पानी लुटाओ ख़ुद से
कभी डुबकी लगाओ ख़ुद से
तुम्हे भी मंजिल मिल जायेगी
सफलता तुम्हारे भी हाथ आयेगी
न भी आए तो उदास मत हो
एक बार मुस्कुराओ ख़ुद से
अपनी असफलता को स्वीकार करो
एक बार
नयी उम्मीद करो ख़ुद से
कोई पतवार गढो फ़िर से
कोई नाव चलाओ फ़िर से
-रोशन प्रेमयोगी
बिलकुल सही कहा है ...अगर कुछ करना चाहते हैं तो शुरुआत खुद से ही होनी चाहिए
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }