17/07/09

भीगेगा तुम्हारा तन-मन


खुली आँखों में ढेर सारे बादल रोज़ उमड़ते हैं
लेकिन कभी बरसात नहीं होती
सूखा पड़ गया है दिल की धरती पर
कुछ दोस्त कभी-कभी दिलासा देते हैं
कराएँगे क्लाउड सीडिंग
होगी झमाझम बारिश
भीगेगा तुम्हारा तन-मन
जिस दिन मिलता है दिलासा
दिन भर खुश रहता हूँ
रात को देखता हूँ ढेर सारे सपने
अगले दिन छाया रहता है खुमार
उसके अगले दिन खोलकर बैठता हूँ घर का दरवाज़ा
शाम हो जाती है कोई दोस्त नही आता
मैं अगले दिन निकल जाता हूँ बाज़ार
इस उम्मीद में कि कुछ दोस्त तो मिलेंगे ही
मिलते हैं, सॉरी बोलते हैं, व्यस्तता का बहाना बनाते हैं
अगले हफ्ते आने का वादा करते हैं
मैं खुश
लेकिन वे अगले हफ्ते भी नहीं आते
मैंने भी कल एक रास्ता निकाला है
जब बहुत भीगने का मन करता है तो
आधी रात में छत पर चला जाता हूँ
लेट जाता हूँ
सुबह महसूस करता हूँ
मेरी त्वचा चिपचिपा रही है
खुश होता हूँ
चलो बारिश न सही
ओश में तो भीग गया तन
एक दिन इसी तरह भीग जाएगा मन
-रोशन प्रेमयोगी

8 comments:

  1. चलिये, कुछ संतोष हुआ. अच्छी रचना.

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  2. क्या जाने कब भींगेगा मन पता नही .......सुन्दर भाव लिये हुये अच्छी कविता .....बधाई

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  3. वाह रोशन जी वाह....लाजवाब रचना है...भावाभिव्यक्ति और शब्द चयन कमल का है...बधाई....
    नीरज

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  4. रोशन जी ! मै तो आपको अभी तक कहानीकार ही जानती थी ..........बहुत सुन्दर लिखा ...बधाई .

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  5. bhai waah..ise kehte hai jugaad..khair acchi kavita hai...badhai ho..

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