29/12/08

नसीब

बहुत समझाया ख़ुद को कि

नसीब की भी कीमत होती है

मन नहीं माना

कल जब घर पहुँचा और देखा आईने को

पता चला कि उसमे दरार आ गई है

आइने का रिश्ता नसीब से तो नही लेकिन मेरा है

दरअसल आईने को मैंने बिजली आने के बाद देखा

जब वह अंधेरे में मेरे से टकराकर टूट चुका था

-रोशन प्रेमयोगी

08/12/08

सुनूंगा दिल की

लोग कहते हैं न कहो दिल की बात

जो सुनेगा नाराज होगा

दिल कहता है न सुनो किसी की बात

लड़कीयो जैसे हैं ये सलाह देने वाले

मैं कहता हूँ सुनूंगा दिल की

जबसे दिल टूटा है सलाहों पर भरोसा नही होता

-रोशन प्रेमयोगी

23/11/08

पीली कनेर हो तुम

इससे पहले नहीं जाना था कि प्यार क्या है.
इससे पहले नहीं माना था कि प्यार दुःख देता है।
एक साल का रहा तुम्हारा साथ
लगा ही नहीं कि तुम भी खास हो।
अब जब तुम हो कोसों दूर।
लगता है,
मेरी जिंदगी में भी प्यार है,
कोई है मेरे दिल के पास
कोई आता है बहुत याद
-रोशन प्रेमयोगी

14/11/08

Bas yun hi...: कुछ बातें...

Bas yun hi...: कुछ बातें...
khuli kitab ki tarah rahana jindagi bhar
duniya jalati hai to jalati rahe
roshan premyogi

05/11/08

कुछ लोग कबीर की तरह गाते है

कुछ लोग कबीर की तरह गाते है
कुछ लोग एसुरी की तरह फाग सुनाते हैं।
कुछ लोग भिखारी ठाकुर की तरह नाच दिखाते हैं।
कवि, गवैया और नचनिया होना बड़ी बात नहीं
बड़ी बात है कबीर, भिखारी ठाकुर और एसुरी होना।
-रोशन प्रेमयोगी

04/11/08

चिडियाघर विमेंस का ही उपन्यास नही

लोग चिडियाघर को विमेंस का उपन्यास कह रहे हैं यह ठीक नहीं। मुझे खुशी है की लोग इसे पसंद कर रहे हैं। कामतानाथ जी ने हिंदुस्तान दैनिक और डॉ रजनी गुप्ता ने इंडिया टूडे में इसके बारे में लिखा है। मुझे कामतानाथ जी की टिप्पदी से खुशी हुई है। मी हिन्दी का निर्गुट लेखक हूँ। इसका नुकसान मुझे उठाना पड़ रहा है लेकिन खुशी है की पाठकों ने मुझे पलकों पर बिठाया है। जिसके बाद मेरे प्रति प्रकाशकों का नजरिया बदला है। अगले उपन्यास के लिए अभी से तीन प्रकाशक मांग रहे हैं। यह स्थिति पाठकों के प्यार से बनी है। शुक्रिया पाठकों, लेकिन चिडियाघर को न महिलाओ का उपन्यास कहिये न मुझे पुरूष लेखक। लेखक को सिर्फ़ लेखक कहिये। लिंग के आधार पर बांटने का जमाना अब पुराना हो चुका है। बाज़ार ने लेखको को बहतर लिखने के लिए मज़बूर किया है, अब जो बेहतर लिखेगा वाही बिकेगा। सो चिडियाघर को प्लीज स्त्री विमर्श न कहिये। उसकी कहानी को कहानी की तरह लीजिये। जहा तक मेरी भाषा का सवाल है तो मी पत्रकार पहले हूँ, सो मेरी हिन्दी आम आदमी की हिन्दी है.

10/08/08

sanam ki marji

dhokhe khana rah me
dil per khana chot
mera shagal hai
jaisi hasate ko rulana
sanam ki marji
-roshan premyogi

08/07/08

kuch es tarah

kuch es tarah hua jana
unaka
band ho gayee pyar ki kitab
panno ke beech usane bikhara dee gond
chipak gaye panne
koshis karata hoon roj
khulate nahi panne
khulati nahi kitab
-roshan premyogi

11/02/08

KHAUF MOHABBAT KA


EK TARAF KAHETE HAIN TUM MERE GUNAHGAR NAHIN

DOOSARI OOR VE RUNJISH KO HAVA DETE HAI

AJEEB KHAUF HAI UNPER MERI MOHABBAT KA

JAB BHI MILATE HAIN LADANE KI BAT KARETE HAI



-ROSHAN PREMYOGI

16/01/08

mere dil ke kitab

usane bench di
mere dil ke kitab
maine diya tha sirf padhane ko
yeh sochaker
hamrahi hai.
gum nahi bevafai ka
ya yeh ki rasta chod gaya apana
yeh to bahut loge karate hai.
usane bench di mere dil ki kitab
kal aaya tha usake yar ka patra(email)
sahanubhooti jatai usane
meri poori kahani batai
sochata hoon aisa ladakiya nahi karati
ve dheere se nikalati hai jindagee se
mujhe na milata aj tak javab
agar usaka dubara patra(email) na aata
usane likha tha-
tumhara #saman# lauta raha hoon
aisi ladaki ka kya bharosa
jo tumhari na hui
meri hogi
kya hogi.
maine phone karake poochha
vah bola-
vah jab jaagati hai
karati hai mujhe
bepanah pyar
par jab soti hai
tumhara nam budbudati hai.
ajeeb khauf hai usapar tumhari mohabbat ka
jab bhi poochho to ladane ki bat karati hai.

-roshan premyogi

03/01/08